Saturday 22 February 2014

हमारी पुस्तक 'हवा में शब्द' का कवर पेज




Cover page of our sixth book ‘Hava Mein Shabd’



हमारी पुस्तक 'हवा में शब्द' का कवर पेज 


खिली-सी धूप





(चित्र गूगल से साभार )

तुझसे मिल
बन जाते अपने
पल भर में
***
खिली-सी धूप
छत पर लड़की
उदास मन
***
तू खुद पर
रख पूरा विश्वाश
बनेगी बात
***

Sunday 16 February 2014



14 फरवरी को लोकपाल बिल के मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा में खूब हंगामा हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री (दिल्ली) ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया...एक बार फिर से आन्दोलन/स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई/भ्रष्टाचार/एक दूसरे को पछाड़ने/उखाड़ फेंकने के स्वर तेज हो उठे हैं...इसी परिवेश पर चंद हाइकु हमारी ओर से:

बदली हवा
नहीं चलेगी अब
वो राजनीति
      *
तोड़ने होंगे
वर्तमान में बने
सत्ता के किले
      *
सोचता मन
कैसा ये जनतंत्र
त्रस्त है जन

      *

(चित्र: गूगल से साभार)



13 फरवरी को भारतीय लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाली संसद में इसी मंदिर के कुछ माननीय भक्तों (नेताओं) ने काली मिर्च का स्प्रे करने का पुनीत कार्य संपन्न किया, जिससे कुछ भक्तों (नेताओं) को तुरंत अस्पताल की शरण में जाना पड़ा ! यह नज़ारा पूरी दुनिया ने देखा, हम भारतवासी फिर से एक बार शर्मसार हुए...!  इसी परिवेश पर चंद हाइकु हमारी ओर से:

खेलते कुश्ती
संसद के मैदान
नेता महान
      *
कैसे ये नेता
उड़ाते जो मखौल
गणतंत्र का
      *
जो कुछ हुआ
जनता है शर्मसार
मस्त हैं नेता
      *

(चित्र: गूगल से साभार)



Sunday 9 February 2014

पुस्तक समीक्षा



हिंदी ब्लॉग जगत में सुपरिचित डॉ. सुशील कुमार जोशी जी ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में हमारी पुस्तक “शब्दों के पुल” पर अपने स्नेह-पुष्पों के रूप में कुछ स्वसृजित हाइकुओं की वर्षा की है । जहाँ तक मुझे याद पड़ता है मैंने पहले इनके हाइकु नहीं पढ़े हैं और यही इस समीक्षा की विशेषता कही जाएगी कि हाइकु की पुस्तक पर हाइकुओं द्वारा ही उन्होंने अपनी बात रखी है । हम उनके शुक्रगुज़ार हैं और हम उसे आप सभी मित्रों से यहाँ साझा कर रहे हैं :

जीवन और उससे जुड़े हुए हर पहलू को छूता है
“शब्दों के पुल”



डा. सारिका मुकेश की किताब ‘शब्दों के पुल’ हाथ में हैं । एक साधारण पाठक को समीक्षा करने का अवसर और एक सम्मान जो उन्होंने मुझे दिया है, उसके लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं । लेखन मेरा शौक नहीं मजबूरी है। हाँ, ब्लॉग की भूल-भुलैय्या में भटकने की आदत जरूर है । अपने कृतित्व को पुस्तक का रुप दे पाना आसान नहीं होता है और सबसे महत्वपूर्ण है पाठक तक उसका पहुँचना । डा. सारिका मुकेश से मैं जितना परिचित हूँ उतने में ही मुझे उनका लेखन के प्रति झुकाव और असीम ऊर्जा का आभास हुआ । ‘शब्दों के पुल’ मे बहुत ही सुंदरता के साथ 112 पन्नों में 83 शीर्षकों के अंतर्गत तीन सौ दस हाईकू को एक माला की तरह पिरोया गया है। डा. सारिका मुकेश ने जीवन और उससे जुड़े हुऐ हर पहलू को छुआ है। हाईकू में पाँच-सात-पाँच अक्षरों की तीन लाईनों में बहुत खूबसूरती से जिस अंदाज में बहुत से पहलुओं को छूते हुए कवयित्री ने बहुत गहरी बातों को भी बहुत ही आसानी से कह दिया है, वो वाकई काबिले- तारीफ़ है । प्रतिभा भीड़ में से उसी तरह से निकल कर सामने आ जाती है जैसे दूध से मक्खन उसे ना टिप्पणियों की जरूरत होती है ना समीक्षा की । मैं कवि तो नहीं हूँ पर इतना जरूर कहना चाहूँगा:


सभी कुछ तो 

लिख दिया गया है 
बचा क्या है
       *


ऐसे ही कुछ 

लिखती चली जाना 
है अभिलाषा ।
       *


फिर-फिर से 

पढ़ना है जो लिखा
समझ गया

       *


शब्दों के पुल

बनाती चली गईं
फेविकोल से 
       *

आभार ले लो 
दिया है अवसर
सोचने का

       *



फिर-फिर पढ़कर नये-नये अर्थ समझता रहूँगा । इतना जरूर कहूँगा इस विधा के विद्यार्थियों के लिऐ इस तरह की पुस्तक पाठ्यक्रम में रखी जानी चाहियें । शुभकामनाओं के साथ,

डा. सुशील कुमार जोशी 
प्रोफेसर भौतिक रसायन विज्ञान 
कुमाऊँ विश्वविद्यालय
अल्मोड़ा-263601 (उत्तराखण्ड)

Thursday 6 February 2014

वसंत आया





                                                   वसंत आया 
                                      आई तुम्हारी याद
                                        दिल दुखाया 



(चित्र गूगल से साभार)

Tuesday 4 February 2014

जय माँ सरस्वती



                         वन्दे चरण
                                           हे माता सरस्वती
                         करूँ नमन 

                     

              माँ सरस्वती जयंती पर हार्दिक मंगल कामनाएँ !




                    खिला-सा मन
मदमस्त-सा समां
  आया वसंत



         बसंत पंचमी पर आप सभी को हमारी मंगल कामनाएँ !