Monday 21 April 2014

पुस्तक समीक्षा










आज 21.04.2014 को भोपाल और उज्जैन से प्रकाशित “दैनिक अग्निपथ” समाचार पत्र में हमारे हाइकु-संग्रह “शब्दों के पुल” की डॉ. राजेश रावल जी द्वारा की गई समीक्षा प्रकाशित हुई है...
हार्दिक आभार डॉ. राजेश रावल जी :))











Friday 4 April 2014

पुरस्कृत होने के क्षण...




सारिका मुकेश का कविता-संग्रह “खिल उठे पलाश” पुरस्कृत हुआ और उन्हें “शब्द श्री” सम्मान से विभूषित किया गया

मध्य प्रदेश सामाजिक विज्ञान शोध संस्थान, उज्जैन में अखिल भारतीय साहित्यिक सम्मान, 2014’ के समारोह में 30 मार्च 2014 रविवार को सारिका मुकेश के कविता-संग्रह खिल उठे पलाशको पुरस्कृत कर शब्द श्रीकी मानद उपाधि से सम्मानित किया गया । हम इसके लिए समस्त निर्णायक मंडल का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं। खेद है कि परिस्थितियोंवश इस सुअवसर पर सारिका मुकेश में सिर्फ़ मुकेश ही सम्मिलित हो सके।

इस कार्यक्रम में विक्रम विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ रामराजेश मिश्र की अध्यक्षता में हुए सम्मान समारोह मे अतिथि के रूप में वरिष्ठ कलाविद् डॉ प्रभातकुमार भट्टाचार्य, श्री अनिल अनवर जोधपुर, वरिष्ठ पत्रकार श्री सुनील जैन, कलाविद् प्रो संदीप राशिनकर इंदौर, डॉ सतिन्दर कौर सलूजा उपस्थित थे ।



Thursday 6 March 2014

एक हाइकुनुमा कविता





होती बिटिया
चिड़ियों के जैसी
बाबुल घर

(चित्र: गूगल से साभार)




एक हाइकुनुमा कविता






न हो हताश
डूबकर उगता
फ़िर से सूर्य
***

सभी मित्रों को सुप्रभात :-))




(चित्र: गूगल से साभार)

Wednesday 5 March 2014

हुई सुबह



बजा अलार्म
छोड़ो अब बिस्तर
हुई सुबह

(चित्र: गूगल से साभार)



सोचो तो ज़रा
देखे कभी तुमने
शब्दों के पंख
***

लूट ले गए
लो सारी महफ़िल
शब्द तुम्हारे       

***


(चित्र: गूगल से साभार)

Sunday 2 March 2014


                        आते वसंत
                      हर एक उम्र में
                                                     न करो दुःख   


(चित्र: गूगल से साभार)




भागता चाँद 
गहरायी-सी रात 
पसरा मौन 



(चित्र: गूगल से साभार)




चला सूरज
समेटकर ज्योति
अपने घर 



(चित्र: गूगल से साभार)

Saturday 22 February 2014

हमारी पुस्तक 'हवा में शब्द' का कवर पेज




Cover page of our sixth book ‘Hava Mein Shabd’



हमारी पुस्तक 'हवा में शब्द' का कवर पेज 


खिली-सी धूप





(चित्र गूगल से साभार )

तुझसे मिल
बन जाते अपने
पल भर में
***
खिली-सी धूप
छत पर लड़की
उदास मन
***
तू खुद पर
रख पूरा विश्वाश
बनेगी बात
***

Sunday 16 February 2014



14 फरवरी को लोकपाल बिल के मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा में खूब हंगामा हुआ और तत्कालीन मुख्यमंत्री (दिल्ली) ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया...एक बार फिर से आन्दोलन/स्वतंत्रता की दूसरी लड़ाई/भ्रष्टाचार/एक दूसरे को पछाड़ने/उखाड़ फेंकने के स्वर तेज हो उठे हैं...इसी परिवेश पर चंद हाइकु हमारी ओर से:

बदली हवा
नहीं चलेगी अब
वो राजनीति
      *
तोड़ने होंगे
वर्तमान में बने
सत्ता के किले
      *
सोचता मन
कैसा ये जनतंत्र
त्रस्त है जन

      *

(चित्र: गूगल से साभार)



13 फरवरी को भारतीय लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाली संसद में इसी मंदिर के कुछ माननीय भक्तों (नेताओं) ने काली मिर्च का स्प्रे करने का पुनीत कार्य संपन्न किया, जिससे कुछ भक्तों (नेताओं) को तुरंत अस्पताल की शरण में जाना पड़ा ! यह नज़ारा पूरी दुनिया ने देखा, हम भारतवासी फिर से एक बार शर्मसार हुए...!  इसी परिवेश पर चंद हाइकु हमारी ओर से:

खेलते कुश्ती
संसद के मैदान
नेता महान
      *
कैसे ये नेता
उड़ाते जो मखौल
गणतंत्र का
      *
जो कुछ हुआ
जनता है शर्मसार
मस्त हैं नेता
      *

(चित्र: गूगल से साभार)



Sunday 9 February 2014

पुस्तक समीक्षा



हिंदी ब्लॉग जगत में सुपरिचित डॉ. सुशील कुमार जोशी जी ने अपने विशिष्ट अंदाज़ में हमारी पुस्तक “शब्दों के पुल” पर अपने स्नेह-पुष्पों के रूप में कुछ स्वसृजित हाइकुओं की वर्षा की है । जहाँ तक मुझे याद पड़ता है मैंने पहले इनके हाइकु नहीं पढ़े हैं और यही इस समीक्षा की विशेषता कही जाएगी कि हाइकु की पुस्तक पर हाइकुओं द्वारा ही उन्होंने अपनी बात रखी है । हम उनके शुक्रगुज़ार हैं और हम उसे आप सभी मित्रों से यहाँ साझा कर रहे हैं :

जीवन और उससे जुड़े हुए हर पहलू को छूता है
“शब्दों के पुल”



डा. सारिका मुकेश की किताब ‘शब्दों के पुल’ हाथ में हैं । एक साधारण पाठक को समीक्षा करने का अवसर और एक सम्मान जो उन्होंने मुझे दिया है, उसके लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं । लेखन मेरा शौक नहीं मजबूरी है। हाँ, ब्लॉग की भूल-भुलैय्या में भटकने की आदत जरूर है । अपने कृतित्व को पुस्तक का रुप दे पाना आसान नहीं होता है और सबसे महत्वपूर्ण है पाठक तक उसका पहुँचना । डा. सारिका मुकेश से मैं जितना परिचित हूँ उतने में ही मुझे उनका लेखन के प्रति झुकाव और असीम ऊर्जा का आभास हुआ । ‘शब्दों के पुल’ मे बहुत ही सुंदरता के साथ 112 पन्नों में 83 शीर्षकों के अंतर्गत तीन सौ दस हाईकू को एक माला की तरह पिरोया गया है। डा. सारिका मुकेश ने जीवन और उससे जुड़े हुऐ हर पहलू को छुआ है। हाईकू में पाँच-सात-पाँच अक्षरों की तीन लाईनों में बहुत खूबसूरती से जिस अंदाज में बहुत से पहलुओं को छूते हुए कवयित्री ने बहुत गहरी बातों को भी बहुत ही आसानी से कह दिया है, वो वाकई काबिले- तारीफ़ है । प्रतिभा भीड़ में से उसी तरह से निकल कर सामने आ जाती है जैसे दूध से मक्खन उसे ना टिप्पणियों की जरूरत होती है ना समीक्षा की । मैं कवि तो नहीं हूँ पर इतना जरूर कहना चाहूँगा:


सभी कुछ तो 

लिख दिया गया है 
बचा क्या है
       *


ऐसे ही कुछ 

लिखती चली जाना 
है अभिलाषा ।
       *


फिर-फिर से 

पढ़ना है जो लिखा
समझ गया

       *


शब्दों के पुल

बनाती चली गईं
फेविकोल से 
       *

आभार ले लो 
दिया है अवसर
सोचने का

       *



फिर-फिर पढ़कर नये-नये अर्थ समझता रहूँगा । इतना जरूर कहूँगा इस विधा के विद्यार्थियों के लिऐ इस तरह की पुस्तक पाठ्यक्रम में रखी जानी चाहियें । शुभकामनाओं के साथ,

डा. सुशील कुमार जोशी 
प्रोफेसर भौतिक रसायन विज्ञान 
कुमाऊँ विश्वविद्यालय
अल्मोड़ा-263601 (उत्तराखण्ड)

Thursday 6 February 2014

वसंत आया





                                                   वसंत आया 
                                      आई तुम्हारी याद
                                        दिल दुखाया 



(चित्र गूगल से साभार)

Tuesday 4 February 2014

जय माँ सरस्वती



                         वन्दे चरण
                                           हे माता सरस्वती
                         करूँ नमन 

                     

              माँ सरस्वती जयंती पर हार्दिक मंगल कामनाएँ !




                    खिला-सा मन
मदमस्त-सा समां
  आया वसंत



         बसंत पंचमी पर आप सभी को हमारी मंगल कामनाएँ !

              

Tuesday 28 January 2014

हमारे हाइकु संग्रह "शब्दों के पुल" की समीक्षा




   जीवन की धूप और छाँव है
                          'शब्दों के पुल'




दोस्तों...आज ही 'सारिका मुकेशजी की लिखी नई पुस्तक 'शब्दों के पुल' (प्रकाशक-जाह्नवी प्रकाशनदिल्ली) प्राप्त हुई है. हिन्दी कविता में नवीन प्रयोगवादी कवियों के द्वारा जापान से जिस नई विधा हाइकुका पदार्पण हुआ, उसी विधा में यह पुस्तक अपने रंग बिखेरती है .                        
अपनी भावनाओं को कम से कम शब्दों में सार्थकता से पिरोना काफी कठिन है परन्तु सारिका मुकेश जी ने इस चुनौती को स्वीकार करते हुए इस विधा को नए आयाम प्रदान किये है. जहाँ उनके कुछ हाइकु परंपरागत कविता को नई दिशा प्रदान करते है वही दूसरी और कुछ हाइकु मानव स्वभाव का सफल चित्रण करते प्रतीत होते है.
कुल मिलाकर जीवन की धूप और छाँवदोनों कोमात्र तीन पंक्तियों में बांधकर सारगर्भित रूप से प्रस्तुत किया गया है जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है. इस सफलता पर मेरी और से उन्हें बहुत बहुत शुभकामनाएं.
आशा है कि भाविष्य में भी वे इस प्रकार के नवीन प्रयोगों से कविता को ऊँचाइयाँ प्रदान करेंगे......
उनकी पुस्तक 'शब्दो के पुलसे कुछ हाइकु – 

                         पूरब दिशा,
                         प्रातः हो उठी लाल,
                         निकला सूर्य.
                          -------------
                         ठगता रहा,
                         माया का संसार,
                         जन्मों-जन्मों से
                         ----------------
                         चलती यादें
                         मस्तिष्क पटल पे
                         चलचित्र सी
                         ----------------
                         लगे अक्सर
                         आ पहुंची निकट
                          जीवन संध्या
                         -----------------

---एक बार फिर से सारिका मुकेश जी को बहुत बहुत बधाई...


              -देव निरंजन
              (लेखक एवं कवि)
              देवास (म.प्र.)
                                                     21 जनवरी 2014

Sunday 26 January 2014

'शब्दों के पुल' की समीक्षा




मर्मस्पर्शी हाइकुओं का संकलन है:
शब्दों के पुल



   
        अभी एक सप्ताह पूर्व डॉ. सारिका मुकेश द्वारा रचित एक हाइकु संग्रह मिला, जिसका नाम था शब्दों के पुल। 83 रचनाओं से सुसज्जित 112 पृष्ठों की इस पुस्तक को जाह्नवी प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया है। जिसका मूल्य रु.200/- रखा गया है। जनसाधारण की सोच से परे इसका आवरण चित्र Creative Art ने तैयार किया है।

       इस हाइकु संग्रह को आत्मसात् करते हुए मैंने महसूस किया है कि इसकी रचयिता डॉ. सारिका मुकेश अपने आप में एक शब्दकोष हैं। चाहे उनकी लेखनी से रचनाओं के रूप में क्षणिकाएँ निकलें या हाइकु निकलें वह अपने आप में किसी कविता से कम नहीं होती है।
       कवयित्री ने अपनी बात में लिखा है-
हाइकु स्वयं में एक कविता है। इसमें कहे से अधिक अनकहा होता है, जिसके अर्थ पाठक अपनी पैनी दृष्टि और सूझ-बूझ से खोजकर तराशता है। हाइकु मूलतः प्रकृति से जुड़े रहे हैं परन्तु मनुष्य भी इसी प्रकृति का हिस्सा है और वैसे भी साहित्य समाज का दर्पण है और समाज व्यक्ति/मनुष्य से बनता है, सो मनुष्य की अनदेखी करना कदापि उचित नहीं होगा। इसलिए मनुष्य को केन्द्र में रखकर खूब हाइकु लिखे जा रहे हैं।

जीवन जैसे
दूब की नोक पर
ओस की बूँद
--
क्यों भूले सत्य
भूल गये ईश्वर
अहंकार में
      
        कवयित्री ने अपने हाइकु संग्रह “शब्दों के पुल” का श्रीगणेश वन्दे चरण से किया है-

वन्दे चरण
तुझको समर्पण
श्रद्धा सुमन
--
ओ मेरे कान्हा
रँग दे चुनरिया
अपने रँग
--
उम्र तमाम
बसो मेरे मन में
ओ घनश्याम
       
           महाभारत के परिपेक्ष्य में कवयित्री ने नारी की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए कुछ इस प्रकार से हाइकुओं में बाँधा है-

महाभारत
अन्याय के खिलाफ
बिछी बिसात
--
पाँच पाण्डव
’ अकेली द्रोपदी
करती तृप्त
--
स्त्री की नियति
कभी अंकशायिनी
तो कभी जूती
      
     प्रकृतिचित्रण में भी डॉ.सारिका मुकेश की कलम अछूती नहीं रही है। संध्याकाल को उन्होंने अपने हाइकुओं में शब्द देते हुए लिखा है-

दिन में थक
समुद्र की गोद में
छिपता सूर्य
--
लौटते पंछी
अपने घोंसले में
बच्चों के पास
--
हसीन शाम
उतरी धरा पर
छलके जाम
      
               आयु की शाश्वत परिभाषा कवयित्री ने उम्र और हमशीर्षक से कुछ इस प्रकार दी है-

उम्र की गाड़ी
दौड़ती प्रतिपल
मृत्यु की ओर
--
उम्र बढ़ती
घटती प्रतिपल
यह जिन्दगी
--
जन्मदिन क्यों?
होता एक बरस
आयु का कम
       
           डॉ.सारिका मुकेश ने अपने हाइकु संग्रह “शब्दों के पुल” में रोजमर्रा की चर्या में पाये जाने वाले आशा-प्रत्याशा, सोचता मन, मित्र, पंछी,आकांक्षा, सूरज, पानी पर लकीरें, आदमी, आँसू, अज्ञानता, विसंगति, तूफान, परिवर्तन, बेवफाई, विदा, रामायण, राजनीति, जीवनसंध्या, नारी आदि विविध विषयों पर अपनी सहज बात कही है।
          अन्त में इतना ही कहूँगा कि डॉ. सारिका मुकेश बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं और उनकी हाइकुकृति “शब्दों के पुल” एक पठनीय ही नहीं अपितु संग्रहणीय काव्य पुस्तिका है।
          मेरा विश्वास है कि शब्दों के पुल” हाइकुसंग्रह सभी वर्ग के पाठकों के दिल को छूने में सक्षम है। इसके साथ ही मुझे आशा है कि यह हाइकु संग्रह समीक्षकों की दृष्टि से भी उपादेय सिद्ध होगा।
शुभकामनाओं के साथ!
समीक्षक
 (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
कवि एवं साहित्यकार 
टनकपुर-रोडखटीमा
जिला-ऊधमसिंहनगर (उत्तराखण्ड) 262 308
 E-Mail .  roopchandrashastri@gmail.com
फोन-(05943) 250129
मोबाइल-07417619828