Friday 23 August 2013

मानव तुम ना हुए सभ्य



आज भी कई
होते चीरहरण
कहाँ हो कृष्ण
                ***
रही चीखती
क्यों नहीं कोई आया
उसे बचाने
                ***
निर्ममता से
तार-तार इज्ज़त
करें वहशी
                ***
हुआ वहशी
खो दी इंसानियत
क्यों आदमी ने
                ***
तमाम भय
असुरक्षित हम
कैसा विकास
                ***
कैसी ये व्यथा
क्यों रहे जानवर
पढ़-लिख के
                ***
वामा होने की
कितनी ही दामिनी
भोगतीं सज़ा
                ***
बेबस नारी
अजीब-सा माहौल
कैसा मखौल
                ***
ओ रे मानव
कई युग बदले
हुआ ना सभ्य
                ***

दामिनी की स्मृति में-1


जहाँ कहीं भी
हो नारी का सम्मान
बसें देवता
                ***
अजीब व्याख्या
करें चीरहरण
पूजते नारी
                ***
बदले युग
मानव तुम कभी
हुए ना सभ्य
                ***

Monday 12 August 2013

सेदोका



अपनी व्यथा
सुनाऊँ अब किसे
किसे है मेरा ध्यान
सब हैं खोए
अपनी दुनिया में
मुझसे बेखबर .

जय जवान



आज प्रस्तुत हाइकु हमारे देश की आज़ादी को स्थापित करने और उसे सतत बनाए रखने के लिए हमारी सीमाओं पर दिन-रात ड्यूटी में लगे तमाम वीर सैनिकों/शहीदों  को सादर नमन करते हुए समर्पित हैं:

ऐ मेरे देश
तुझको समर्पित
मेरा सर्वस्व
    ***
लड़ा मौत से
अंतिम साँसों तक
देश के लिए
       ***
देश के लिए
हँसकर दे जान
वो ही महान
       ***
धन्य वो वीर
माँ की रक्षा के लिए
प्राण गँवाए
       ***
देश के लिए
हँसकर दी जान
जय जवान
       ***
गिद्ध के जैसे
सीमा पर प्रहरी
आँख गड़ाए
       ***
जय जवान
करते हिफ़ाज़त
तुम देश की

       ***

आया सावन



छाई उमंगें
चहक उठा मन
आया सावन
    ***
पेड़ों पे झूले
कोयल की पुकार
दिल में प्यार
    ***
सिर्फ़ तुम्हीं को
अर्पित तन मन
मेरे साजन

    ***

ओ कृष्ण!


बताना कृष्ण
कौन है तुम्हें प्रिय
राधा या मीरा?
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रास रचाते
अब भी मथुरा में
क्या तुम कृष्ण?        
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निधि-वन में
सुना है आज तक
रास रचाते                
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सारथी बन
तुमने अर्जुन का
चलाया रथ             
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निधि-वन में
गोपियों संग कृष्ण
रास रचाते              
   ******
अभी भी आते
क्या तुम हर रात
निधि-वन में    
   ******
(हम जब मथुरा भ्रमण के लिए गए थे तो हमें वहां गाइड और अन्य लोगों से यह जानकारी मिली थी कि अभी भी प्रतिदिन रात को निधि वन में कृष्ण आते हैं और वहां गोपियों के साथ तमाम रात्रि रास लीला करते हैं, इसीलिए रात्रि को वहां पर कोई नहीं रुक सकता है और जिसने इसके लिए प्रयास किया है अर्थात जो रात्रि को वहां रुक गया है वो उस रात्रि के बाद जीवन भर कुछ बोल नहीं पाया...यह सुनकर मन में एक अजीब सा रोमांच जाग उठा था...उसी की स्मृति में यहाँ कुछ हाइकु लिखे हैं....)        

                                      ******

महाभारत पर 8 हाइकू



भीष्म तुम भी
देखते रहे सब
क्यों चुपचाप?          
     ***
स्वयं को हार
द्रौपदी को लगाया
कैसे दाँव पे?              
     ***
युद्ध-भूमि में
कृष्ण दें अर्जुन को
गीता-संदेश             
     ***
पाँच पाँडव
जीतें महाभारत
साथ थे कृष्ण            
     ***
भूली नहीं वो
होना चीर-हरण
लिया बदला            
     ***
महाभारत
अन्याय के खिलाफ
बिछी बिसात           
     ***
भूलो ना कभी
होना चीर-हरण
बना मरण               
     ***
नारी, बेचारी!
द्रौपदी सीता पड़ीं
कितनी भारी           

     ***

हुई सुबह



हो उठी प्रातः
पूरब दिशा लाल
निकला सूर्य

      ***

गूँजते भौरे
खिल उठी कलियाँ
हुई सुबह

      ***

नई ताजगी
खिला-खिला-सा मन
फैला उजाला

      ***

घौंसला छोड़
दाने की तलाश में
निकले पक्षी

      ***

मन में नेह
अलसाई-सी देह
हुई सुबह

      ***

देखो सूरज
हसीन सुबह से
करता प्यार

      ***

खिलती कली
उदित होता सूर्य
नये सपने

                                      ***

Sunday 4 August 2013




मित्रता दिवस पर सभी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाओं के साथ यह हाइकु समर्पित....

बनो यूँ बड़े
भूले नहीं सुदामा
मित्र तुमको.

HAPPY FRIENDSHIP DAY:-))

Dr. Sarika Mukesh